उत्तरकाशी के द्वारिका प्रसाद सेमवाल पहाड़ी भोज को एक नई पहचान दिला रहे हैं। इनके प्रयासों से उत्तराखंड के कई बड़े होटलों और रेस्टोरेंटों में भी पहाड़ी भोज परोसा जा रहा है। रविवार को ढालवाला में आयोजित गढ़ उत्सव में भी उन्होंने गढ़ बाजार लगाया। उत्तरकाशी के जोशाडा निवासी द्वारिका प्रसाद सेमवाल बताते हैं कि वर्षों पहले वह दक्षिण भारत के दौरे पर गए थे। वहां प्रत्येक होटल, पार्टियों में स्थानीय व्यंजन देख उन्होंने भी उत्तराखंडी पकवानों, व्यंजनों को पहचान दिलाने की ठानी और 2001 में जाड़ी नाम से एक संस्था का गठन किया। उन्होंने शुरुआती दौर में 15 सदस्यीय महिलाओं का समूह बनाया और अलग-अलग स्थानों पर स्टॉल लगा लोगों को पहाड़ी व्यंजन और पकवान बनाने का प्रशिक्षण दिया। बताया कि उनकी संस्था कार्निवाल, मेले, महोत्सव, बैठकों और सरकारी कार्यक्रमों में स्टॉल लगा अब तक करीब 500 लोगों को प्रशिक्षण दे चुकी है। बताया कि उनका अगला लक्ष्य गढ़ भोज को होटल मैंनेजमेंट और मिड डे मील में भी स्थान दिलाना है। द्वारिका प्रसाद का मानना है कि पहाड़ी व्यंजनों को प्रत्येक शादी समारोह, सरकारी और गैर सरकारी बैठकों में शामिल किया जाना चाहिए। इससे उत्तराखंडी व्यंजनों को न सिर्फ पहचान मिलेगी, बल्कि इसकी खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे किसानों को भी फायदा होगा।
इन व्यंजनों का दिया जा रहा प्रशिक्षण -
मंडवे की पूरी, अरबी के गुटके, गहत का सूप, झंगोरा बुरांश फिटनी, पहाड़ी फ्यूजन चौंसा, राजमा भंगजीर के कवाब, नींबू और सेब की चटनी, झंगोरा खुमानी का प्रसाद, कंडाली सूप, लाल भात, काले भट्ट के कटलेट, कंडाली का कापला, मार्चा के पत्ते का कापला, बुरांश की चाट, मार्चा की टिक्की आदि।